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Showing posts from December, 2015

पर कुछ बेबस माएँ भी हैं

दिल्ली की ठिठुरती ठंड बेजान शरीर की तरह है आम आदमी जहाँ ख़ुद को बचाता है ,गर्म कपड़ों से अपनी चारदीवारी के अंदर गर्म कम्बलों,रजाइयों और तरह-तरह के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण से वहीँ बेबस,लाचार, बेघर , सर्वत्र फैली आबादी पर ही असली कहर बरपता है चारदीवारी के अंदर वाली माँ तो गर्म कंबलों के बाबजूद भी अपने बच्चों को सीने से लगाये सोती है पर कुछ बेबस माएँ भी हैं ,जो इस कपकपाती ठंड में लाचार , चिथड़े में , चिथड़े कंबल में बच्चों को अपने सीने से चिपकाए खुले आसमान या फिर कहीं कोने में ज़मीन पर लेटे रात बीतने का इंतज़ार करती है मैं खाने के बाद ,कुछ दोस्तों के साथ ऐसे ही किसी सड़क से गुजरता हूँ कुछ ऐसे ही लाचार लोग हाथ फैलाये भैया ,मालिक कहते हुए ,कुछ मागते हैं मैं अपने बटुए की तरफ देखता हूँ फिर शर्मबोध से सर नीचे किये आगे बढ़ जाता हूँ पास की दुकान पर ,एक दोस्त सिगरेट के लिए पैसे निकालता है सड़क के कुत्ते भी कुछ खाने की चीज़ के लालसे में मुह ऊपर करते हैं और फिर वापस किसी और के पास जाते हैं।  

वही छोटू

आज मैंने उसे देखा उस शीशे वाली महँगी कपड़ो की दूकान के आगे कंधो पे झोला लटकाये खड़ा था पतलून को किसी रस्सी से बांधे हुए था शायद छोटू नाम था उसका   किसी ने उसे  इसी नाम से पुकारा था जब वह घर का कूड़ा उठाने गया था उस धूल सनी मटमैले तन पे कोई चिथड़े नहीं थे अब जब वह शीशे वाली दूकान के सामने  आया है तो उसे उसके ही कद का कोई मिल गया है इस नए अजनबी के बदन पे कीमती लिवास हैं पर वह छोटू के जैसा हरकत नहीं कर रहा शायद!!! वह दिखावे का है, जिसपे लिवास टंगे हैं छोटू अब भी मुस्कुरा रहा है शायद किसी सपने के एक कोने में उसका है  अजीब है..... एक वो है जिसे जरूरत है, पर पास नहीं है और एक वो है जिसे जरूरत नहीं, पर पास है अचानक कहीं से आवाज़ आई : "अबे! निकल इधर से " मैंने देखा ये वही था जिसने कहा था "छोटू ये वाला भी कचरा उठा लेना" . ।

मैं डरता हूँ

मैं डरता हूँ ,एक अनजान सी  अजीब सी  बात से जो शायद मैं खुद भी नहीं जानता मानो किसी बच्चे को कभी किसी अँधेरे कमरे में अकेले छोड़  दिया गया हो और फिर कभी रोशनी पूरी ही न हो पायी हो मानो एक कोना अँधेरा था और अँधेरा ही रह गया हो एक अजीब सी झिझक है, एक अजीब सा डर है मैं डरता हूँ , एक अनजान सी अजीब सी  बात से मैं डरता हूँ , अपने जैसे लोगों का सामना करने से मैं डरता हूँ ,एक अनजान सी  अजीब सी  बात से ये अँधेरा सा कोना जो आज भी प्रकाशविहीन है मानो कभी प्रकाशित  ही न हुआ हो शायद बचपन की कोई बात हो , जो अनकही ही रह गयी हो शायद कोई चीज़ , जिसे पाने की अथक कोशिश हमेशा नाकामयाब रही हो शायद कोई डांट जो मस्तिष्क  के एक कोने में घर कर गयी हो मैं डरता हूँ , एक अनजान सी  अजीब सी  बात से मानो बचपन में कोई पसंदीदा खिलौना खोने का डर हो ये डर शायद विचित्र सी दुनिया को, एक बनावटी हंसी पहन कर झेलने का है शायद इस नाटक में खुद को खोने का है शायद कुछ पाने पे कुछ खोने जैसा है जो भी हो , ये अजीब ...

Someone

You are someone who really matters to me Someone to wake up to To share the weather with, then the coffee Someone to dream with- to plan and then celebrate with Someone to win with, and someone to lose with Someone to care for and protect Someone to talk with for long hours Someone to hold, someone to be held by Someone to cook with, someone to travel with Someone to make magic out of mundane with, and smile because it’s with each other Someone to cry with, to hold and to hug Someone to trust Someone whose eyes reflect what’s in mine Someone to smile with A smile which says, “I’m staying.” Someone to miss, even for a minute- until you return, and it feels like home again Someone to stare at for moments unending Someone to love !!

You make me perfect !!

I don't know what is perfect time or moment I have not read or heard about it. I don't know anything about perfection May be it's all imaginary, a big illusion May be it's one of the intangible aspects of life. May be it can only be felt May be by many of us, may be not I don't know exactly what it is or it may be I just think that some moment in our life seems perfect it seems as if nothing else is required, No achievement, No rush basically nothing else except that particular moment. May be for me it is when I look deep into your eyes May be it's when i see my reflection in your dark pupils. May be when you embrace me and I can feel your warm breath around my neck May be it's your gentle kiss on my forehead May be it's one of our wild imaginations turning real. May be it's one of the most intense moment May be it's your mere presence in my universe that makes it perfect !!

तुम्हारी दुनिया किसी चलचित्र के सीन सी मालूम पड़ती है

तुम्हारी दुनिया किसी चलचित्र के सीन सी मालूम पड़ती है हमारी दुनिया तो छल-कपट , भाग-दौड़  से भरी है तुम्हारी दुनिया शान्त सी , खुशहाल , जीवंत प्रतीत होती है हमारी दुनिया का एक बड़ा हिस्सा , कुछ किलोमीटर के  दायरे में ज़िन्दगी-मौत का फासला तय कर लेते हैं तुम्हारी दुनिया में फासला फासला सा मालूम ही नहीं पड़ता दूरियां पलक झपकते तय होती है इस ज़िन्दगी मौत के फासले नहीं बल्कि कई और अनछुए से पहलू  हैं हमारी ज़िन्दगी सीमित सी , एक कूप-मंडूक  सी मालूम पड़ती है तो तुम्हारी क्षितिज  विहीन आसमान में उड़ते हुए एक परिंदे जैसा हमारी सीमाएं कुएं की दीवारें तय करती है तो तुम सीमाविहीन आसमान में हर रोज , कुछ  नयी उंचाईओं को नापते हो हमारी दुनिया कुछ जानी -पहचानी और प्रचलित मालूम पड़ती है वहीँ तुम्हारी दुनिया किसी चलचित्र के सीन सी मालूम पड़ती है।