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कुछ और पल होते तो

कुछ और पल ठहर जाते तो अच्छा होता कुछ और लफ़्ज़ सुन लेता कुछ अनकही बात सुन लेता कुछ और पल होते  तो ये ,वो कुछ और कर लेता कुछ और लम्हे साथ के होते कुछ और यादें बनाता तुम होते तो ये करता वो करता , कुछ और करता कुछ जानता , कुछ बताता कुछ सुनता , कुछ सुनाता कुछ और पल रुकते तो शायद हमलोग यहाँ चलते वहाँ भी चलते कई और जगह हो आता अपनी लंबी सी ख्वाइशों की पुर्जी भी थोड़ी और छोटी हो जाती कुछ और पल होता तो थोड़ा और जी लेता।

मैं मूँछ हूँ शायद

मैं मूँछ हूँ शायद अकारण ही महत्व ढूढ़ रहा हूँ शायद मैं हवा हूँ मानसपटल के झरोखे से होते हुए सरक लेता हूँ शायद अस्तित्व का झूठा स्तंभ हूँ अच्छी यादों को विलय करने वाला कोई रसायन हूँ शायद वजह नहीं बेवजह हूँ शायद मैं रफ़्तार कम करने वाला ब्रेक हूँ शायद शायद प्रगति के राह का पत्थर उत्थान में पतन का छवि हूँ शायद शायद वर्त्तमान में अतीत का किस्सा हूँ अकारण ही महत्व ढूँढ़ रहा हूँ शायद अच्छे पलों के बारिश में धुल जाने वाली बुरी  याद हूँ मैं 

शहर सपने का ही होता है ,सपने जैसा ही होता है

शहर सपने का ही होता है सपने जैसा ही होता है आँख खुलते ही असली दुनिया सामने होती है कुछ खास तो अलग नही होता रोज़मर्रा की परेशानी तो साथ होती ही है बस यहाँ भाग-दौड़ ज्यादा है भीड़ है ,पर अनजान है अपनापन शायद एक कोने तक ही सीमित है दूर से सुहावना , सामने पास आकर नींद खुलने जैसा है ,सपना टूटने जैसा है वैसे तो कई ज़िंदगियाँ अपने कोने की तालाश में या फिर बिना कोना मिले ही निकल जाती है यहाँ कोना काफी नहीं होता खुले आसमान की तालाश है आसमान तो असीमित दिखता है पर है काफी सीमित , एक कोने तक ही ज़िंदगी मशीनी ज्यादा , इंसानी कम मालूम पड़ती है सूरज की पहली और आखिरी किरण का तो पता ही नहीं होता न ही बीच के समय का पता है कहने को तो समय काफी है पर कुछ भी अपना नहीं है ये शहर भी न बड़ा अजीब है सितारों की रोशनी का तो पता नहीं पर रोशनी की जगमगाहट है फिर भी अँधेरा ही अँधेरा है कहने को तो उत्थान है पर शायद पतन है यह  शहर रिश्तों का संकीर्ण स्वरुप है यह शहर कहने को तो असीमित है , बिना किसी चाहरदीवारी के पर यहाँ तो सिर्फ चाहरदीवारी है कुछ भी असीमित नहीं , सब...

पर कुछ बेबस माएँ भी हैं

दिल्ली की ठिठुरती ठंड बेजान शरीर की तरह है आम आदमी जहाँ ख़ुद को बचाता है ,गर्म कपड़ों से अपनी चारदीवारी के अंदर गर्म कम्बलों,रजाइयों और तरह-तरह के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण से वहीँ बेबस,लाचार, बेघर , सर्वत्र फैली आबादी पर ही असली कहर बरपता है चारदीवारी के अंदर वाली माँ तो गर्म कंबलों के बाबजूद भी अपने बच्चों को सीने से लगाये सोती है पर कुछ बेबस माएँ भी हैं ,जो इस कपकपाती ठंड में लाचार , चिथड़े में , चिथड़े कंबल में बच्चों को अपने सीने से चिपकाए खुले आसमान या फिर कहीं कोने में ज़मीन पर लेटे रात बीतने का इंतज़ार करती है मैं खाने के बाद ,कुछ दोस्तों के साथ ऐसे ही किसी सड़क से गुजरता हूँ कुछ ऐसे ही लाचार लोग हाथ फैलाये भैया ,मालिक कहते हुए ,कुछ मागते हैं मैं अपने बटुए की तरफ देखता हूँ फिर शर्मबोध से सर नीचे किये आगे बढ़ जाता हूँ पास की दुकान पर ,एक दोस्त सिगरेट के लिए पैसे निकालता है सड़क के कुत्ते भी कुछ खाने की चीज़ के लालसे में मुह ऊपर करते हैं और फिर वापस किसी और के पास जाते हैं।  

वही छोटू

आज मैंने उसे देखा उस शीशे वाली महँगी कपड़ो की दूकान के आगे कंधो पे झोला लटकाये खड़ा था पतलून को किसी रस्सी से बांधे हुए था शायद छोटू नाम था उसका   किसी ने उसे  इसी नाम से पुकारा था जब वह घर का कूड़ा उठाने गया था उस धूल सनी मटमैले तन पे कोई चिथड़े नहीं थे अब जब वह शीशे वाली दूकान के सामने  आया है तो उसे उसके ही कद का कोई मिल गया है इस नए अजनबी के बदन पे कीमती लिवास हैं पर वह छोटू के जैसा हरकत नहीं कर रहा शायद!!! वह दिखावे का है, जिसपे लिवास टंगे हैं छोटू अब भी मुस्कुरा रहा है शायद किसी सपने के एक कोने में उसका है  अजीब है..... एक वो है जिसे जरूरत है, पर पास नहीं है और एक वो है जिसे जरूरत नहीं, पर पास है अचानक कहीं से आवाज़ आई : "अबे! निकल इधर से " मैंने देखा ये वही था जिसने कहा था "छोटू ये वाला भी कचरा उठा लेना" . ।

मैं डरता हूँ

मैं डरता हूँ ,एक अनजान सी  अजीब सी  बात से जो शायद मैं खुद भी नहीं जानता मानो किसी बच्चे को कभी किसी अँधेरे कमरे में अकेले छोड़  दिया गया हो और फिर कभी रोशनी पूरी ही न हो पायी हो मानो एक कोना अँधेरा था और अँधेरा ही रह गया हो एक अजीब सी झिझक है, एक अजीब सा डर है मैं डरता हूँ , एक अनजान सी अजीब सी  बात से मैं डरता हूँ , अपने जैसे लोगों का सामना करने से मैं डरता हूँ ,एक अनजान सी  अजीब सी  बात से ये अँधेरा सा कोना जो आज भी प्रकाशविहीन है मानो कभी प्रकाशित  ही न हुआ हो शायद बचपन की कोई बात हो , जो अनकही ही रह गयी हो शायद कोई चीज़ , जिसे पाने की अथक कोशिश हमेशा नाकामयाब रही हो शायद कोई डांट जो मस्तिष्क  के एक कोने में घर कर गयी हो मैं डरता हूँ , एक अनजान सी  अजीब सी  बात से मानो बचपन में कोई पसंदीदा खिलौना खोने का डर हो ये डर शायद विचित्र सी दुनिया को, एक बनावटी हंसी पहन कर झेलने का है शायद इस नाटक में खुद को खोने का है शायद कुछ पाने पे कुछ खोने जैसा है जो भी हो , ये अजीब ...

Someone

You are someone who really matters to me Someone to wake up to To share the weather with, then the coffee Someone to dream with- to plan and then celebrate with Someone to win with, and someone to lose with Someone to care for and protect Someone to talk with for long hours Someone to hold, someone to be held by Someone to cook with, someone to travel with Someone to make magic out of mundane with, and smile because it’s with each other Someone to cry with, to hold and to hug Someone to trust Someone whose eyes reflect what’s in mine Someone to smile with A smile which says, “I’m staying.” Someone to miss, even for a minute- until you return, and it feels like home again Someone to stare at for moments unending Someone to love !!