शहर सपने का ही होता है ,सपने जैसा ही होता है

शहर सपने का ही होता है
सपने जैसा ही होता है
आँख खुलते ही असली दुनिया
सामने होती है
कुछ खास तो अलग नही होता
रोज़मर्रा की परेशानी तो साथ होती ही है
बस यहाँ भाग-दौड़ ज्यादा है
भीड़ है ,पर अनजान है
अपनापन शायद एक कोने तक ही सीमित है
दूर से सुहावना , सामने पास आकर
नींद खुलने जैसा है ,सपना टूटने जैसा है
वैसे तो कई ज़िंदगियाँ अपने
कोने की तालाश में
या फिर बिना कोना मिले ही
निकल जाती है
यहाँ कोना काफी नहीं होता
खुले आसमान की तालाश है
आसमान तो असीमित दिखता है
पर है काफी सीमित , एक कोने तक ही
ज़िंदगी मशीनी ज्यादा , इंसानी कम
मालूम पड़ती है
सूरज की पहली और आखिरी
किरण का तो पता ही नहीं होता
न ही बीच के समय का पता है
कहने को तो समय काफी है
पर कुछ भी अपना नहीं है
ये शहर भी न बड़ा अजीब है
सितारों की रोशनी का तो पता नहीं
पर रोशनी की जगमगाहट है
फिर भी अँधेरा ही अँधेरा है
कहने को तो उत्थान है
पर शायद पतन है यह  शहर
रिश्तों का संकीर्ण स्वरुप है यह शहर
कहने को तो असीमित है , बिना किसी
चाहरदीवारी के
पर यहाँ तो सिर्फ चाहरदीवारी है
कुछ भी असीमित नहीं , सब सीमित है यहाँ
दौड़ना तो चाहते हैं , दौड़ लगती भी है
पर दूरी तय नहीं होती
ये शहर भी न सपने जैसा ही है
आँख खुलते, नींद टूटते ही
कुछ भी नहीं है।

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