शाम को जब पंछी घर को लौटा
"शाम को जब पंछी घर को लौटा "
सूरज की पहली किरण से पहले
लालिमा के साथ ही
पंछी अपने-अपने घरों से
बाहर आने लगते हैं
कुछ अपने तो कुछ बच्चों के ख़ातिर
कुछ गगन की ऊंचाइयों को चुम रहे होते हैं
तो कुछ उड़ान भरना सीख रहे होते हैं
हर सुबह यही होता है
सिवाए कुछेक के जो रास्ते भटक जाते हैं
या फिर नए रास्ते चुन लेते हैं
लौट कर दुनिया बदली हुई पाते हैं
सुबह को भटका शाम को लौटा
शायद हमेशा सच नहीं हो पाती
कभी-कभी पंछी शाम को वापस की
राह ढूँढ़ते तो हैं , पर या तो
रास्ते मिलते नहीं ,या फिर
घर पहले जैसा नहीं मिलता
कुछ साथ रह जाता है तो
सुबह से शाम तक का यात्रा-वृतांत
अफ़सोस के साथ-साथ
शायद थोड़ी ख़ुशी
सूरज की पहली किरण से पहले
लालिमा के साथ ही
पंछी अपने-अपने घरों से
बाहर आने लगते हैं
कुछ अपने तो कुछ बच्चों के ख़ातिर
कुछ गगन की ऊंचाइयों को चुम रहे होते हैं
तो कुछ उड़ान भरना सीख रहे होते हैं
हर सुबह यही होता है
सिवाए कुछेक के जो रास्ते भटक जाते हैं
या फिर नए रास्ते चुन लेते हैं
लौट कर दुनिया बदली हुई पाते हैं
सुबह को भटका शाम को लौटा
शायद हमेशा सच नहीं हो पाती
कभी-कभी पंछी शाम को वापस की
राह ढूँढ़ते तो हैं , पर या तो
रास्ते मिलते नहीं ,या फिर
घर पहले जैसा नहीं मिलता
कुछ साथ रह जाता है तो
सुबह से शाम तक का यात्रा-वृतांत
अफ़सोस के साथ-साथ
शायद थोड़ी ख़ुशी
Comments
Post a Comment