Posts

Showing posts from September, 2015

शीशे से झाँकती एक तस्वीर है

शीशे से झाँकती एक तस्वीर है धुँधली सी , शायद पुरानी यादों को ताजा करने का एक जरिया शीशे के अंदर से हमारे अतीत की एक झाँकी सी निकलती है हमारे अच्छे एवं बुरे पलों के यादों से गुजरता हुआ हमारे वर्तमान तक एक रास्ता हो जैसे बुरी  यादों के लिए कैद तो अच्छी यादों का संग्रहालय सा प्रतीत होता है शीशा कभी अतीत का दर्पण तो कभी वर्तमान का प्रतिबिम्ब मालूम होता है शायद यही हमे हमारा सच दिखाने का जरिया मालूम होता है। 

शाम को जब पंछी घर को लौटा

                                                    "शाम को जब पंछी घर को लौटा " सूरज की पहली किरण से पहले लालिमा के साथ ही पंछी अपने-अपने घरों से बाहर आने लगते हैं कुछ अपने तो कुछ बच्चों के ख़ातिर कुछ गगन की ऊंचाइयों को चुम रहे होते हैं तो कुछ उड़ान भरना सीख रहे होते हैं हर सुबह यही होता है सिवाए कुछेक  के जो रास्ते भटक जाते हैं या फिर नए रास्ते चुन लेते हैं लौट कर दुनिया बदली हुई पाते हैं सुबह को भटका शाम को लौटा शायद हमेशा सच नहीं हो पाती कभी-कभी पंछी शाम को वापस की राह ढूँढ़ते तो हैं , पर या तो रास्ते मिलते नहीं ,या फिर घर पहले जैसा नहीं मिलता कुछ साथ रह जाता है तो सुबह से शाम तक का यात्रा-वृतांत अफ़सोस के साथ-साथ शायद थोड़ी ख़ुशी